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White ।।रण लड़ू या मै मरू, अधीनता मुझे स्वीकार

White ।।रण लड़ू या मै मरू, अधीनता मुझे
   स्वीकार नहीं
   रक्त बहे या सर कटे, मरता यह कोई 
   बारंबार नही,
   बैरी आ खड़ा है द्वार पर, होगा सिर्फ रण 
   कोई व्यापार नही
   समर की मिट्टी मांग रही हैं लहू, पानी
   से भुजती उसकी अब प्यास नही,
   आहुति मांग रहा प्राणों की, इस यज्ञ का
   अब दूसरा कोई उपचार नही
   घाव मिले तो वीरों का आभूषण समझूंगा,
   कायर बन लूंगा उपकार नही,
   काल भी खड़ा मुख पर लिए हँसी,
   महाकाल का उसने किया विचार नहीं
   चलो अब अंतिम विदा लेते है,
   अब सहना और अपमान नही।।

©Shubham Asthana
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