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#गायत्री_मंत्र गायत्री मंत्र का जप किसी भी

#गायत्री_मंत्र     

 गायत्री मंत्र का जप किसी भी देव प्रतिमा के सामने अथवा निराकार ईश्वर का बोध कराने वाले किसी भी पवित्र स्थल पर किया जा सकता है। इसके जप से युगशक्ति की समर्थ धाराओं के प्रवाह का लाभ साधक को प्राप्त होने लगता है।

 #गायत्री_महामंत्र के विभिन्न चरण ब्रह्मविद्या के विभिन्न पक्षों और प्रमाणों का साक्षात्कार साधक को करा सकते हैं। जैसे -

  #ॐ :- परमात्म सत्ता के लिए नाम, रूप से परे स्वरपरक सम्बोधन, जो परमात्मा में विश्व के उद्भव, विकास और समाहरण की सामर्थ्य का बोधक है।

 #भूर्भुवः #स्वः :- वह परमात्मा पृथ्वी, अन्तरिक्ष एवं आकाश तीनों लोकों में संव्याप्त है। वह प्राणरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप है, अर्थात वह सर्वव्यापी और गुणागार है।

#तत्सवितुर्वरेण्यं :- वह सबका उत्पादक, सविता स्वरूप दिव्य ऊर्जा का स्रोत होने के कारण सभी के लिए वरणीय, आत्मसात करने योग्य है।

#भर्गो_देवस्य_धीमहि :- हम उसे अपने अन्तःकरण में धारण करें, चूँकि वह विकारों के विनाश तथा देवत्व के विकास में समर्थ है।

#धियो_यो_नःप्रचोदयात् :- हमारे अन्तःकरण में स्थापित होकर वह हम सबकी बुद्धि को सन्मार्ग पर चला दे।

#महामंत्र के यह विभिन्न चरण साधकों को क्रमशः परमात्म सत्ता के #सार्वभौम_स्वरूप का बोध कराते हैं, उसके साथ साधक का सहज सम्पर्क जोड़ते हैं, साधक के जीवन को शोधित और विकसित बनाते हैं और उनमें एक साथ श्रेय पथ पर बढ़ने की #शक्ति संचरित करते हैं।

जय गुरुदेव 🙏🏻🙏🏻

http://gouravshaligurukul.blogspot.com

©manohar patidar #Gaytrimantra
#गायत्री_मंत्र     

 गायत्री मंत्र का जप किसी भी देव प्रतिमा के सामने अथवा निराकार ईश्वर का बोध कराने वाले किसी भी पवित्र स्थल पर किया जा सकता है। इसके जप से युगशक्ति की समर्थ धाराओं के प्रवाह का लाभ साधक को प्राप्त होने लगता है।

 #गायत्री_महामंत्र के विभिन्न चरण ब्रह्मविद्या के विभिन्न पक्षों और प्रमाणों का साक्षात्कार साधक को करा सकते हैं। जैसे -

  #ॐ :- परमात्म सत्ता के लिए नाम, रूप से परे स्वरपरक सम्बोधन, जो परमात्मा में विश्व के उद्भव, विकास और समाहरण की सामर्थ्य का बोधक है।

 #भूर्भुवः #स्वः :- वह परमात्मा पृथ्वी, अन्तरिक्ष एवं आकाश तीनों लोकों में संव्याप्त है। वह प्राणरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप है, अर्थात वह सर्वव्यापी और गुणागार है।

#तत्सवितुर्वरेण्यं :- वह सबका उत्पादक, सविता स्वरूप दिव्य ऊर्जा का स्रोत होने के कारण सभी के लिए वरणीय, आत्मसात करने योग्य है।

#भर्गो_देवस्य_धीमहि :- हम उसे अपने अन्तःकरण में धारण करें, चूँकि वह विकारों के विनाश तथा देवत्व के विकास में समर्थ है।

#धियो_यो_नःप्रचोदयात् :- हमारे अन्तःकरण में स्थापित होकर वह हम सबकी बुद्धि को सन्मार्ग पर चला दे।

#महामंत्र के यह विभिन्न चरण साधकों को क्रमशः परमात्म सत्ता के #सार्वभौम_स्वरूप का बोध कराते हैं, उसके साथ साधक का सहज सम्पर्क जोड़ते हैं, साधक के जीवन को शोधित और विकसित बनाते हैं और उनमें एक साथ श्रेय पथ पर बढ़ने की #शक्ति संचरित करते हैं।

जय गुरुदेव 🙏🏻🙏🏻

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