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मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं। जमीर

मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी आया ठंड बढ़ाया पर हिम्मत से हमने हर कदम बढ़ाया    ।
लिए हाथ में बांकी हमने धान की फसल को कटवाया हूं
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी से भी लड़ते है ठंडी को भी सहते है।
हम किसान है कुदरत के मौसम से भी लड़ते है।।
 पड़ी जरूरत जब देश  को रोटी खाने की ।
कंधो पर लिए हल बैलों संग  चला जाता हूं।।
सिर पर पगड़ी और कंधो पर लेकर बीज।
धरती का सीना चीरकर गेहूं बोकर आता हूं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।। मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी आया ठंड बढ़ाया पर हिम्मत से हमने हर कदम बढ़ाया    ।
लिए हाथ में बांकी हमने धान की फसल को कटवाया हूं।।
मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी से भी लड़ते है ठंडी को भी सहते है।
हम किसान है कुदरत के मौसम से भी लड़ते है।।
मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी आया ठंड बढ़ाया पर हिम्मत से हमने हर कदम बढ़ाया    ।
लिए हाथ में बांकी हमने धान की फसल को कटवाया हूं
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी से भी लड़ते है ठंडी को भी सहते है।
हम किसान है कुदरत के मौसम से भी लड़ते है।।
 पड़ी जरूरत जब देश  को रोटी खाने की ।
कंधो पर लिए हल बैलों संग  चला जाता हूं।।
सिर पर पगड़ी और कंधो पर लेकर बीज।
धरती का सीना चीरकर गेहूं बोकर आता हूं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।। मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी आया ठंड बढ़ाया पर हिम्मत से हमने हर कदम बढ़ाया    ।
लिए हाथ में बांकी हमने धान की फसल को कटवाया हूं।।
मैं जिन्दगी में अपने वसूलों का वचन देता हुं।
जमीर जिन्दा है मैं किसान हूं और किसान का बेटा हूं।।
सर्दी से भी लड़ते है ठंडी को भी सहते है।
हम किसान है कुदरत के मौसम से भी लड़ते है।।