खामोशी से तेरे डरती हूँ ---------------------------------- अनजाने से आशंका में- मैं खुद से ही अब लड़ती हूँ, खामोशी से तेरे डरती हूँ। बहुत रूप तेरी खामोशी के, ये रूप कौन सा तेरा है- बस यही तो सोचा करती हूँ! खामोशी से तेरे डरती हूँ। कभी लगे इकरार सा है, कभी लगे इनकार सा है, कभी लगे तेरे प्यार सा है, कभी लगता क्रोध बयार सा है। इसी उधेड़बुन में ही- दिन रात दीये सी जलती हूँ! खामोशी से तेरे डरती हूँ। कहीं तू प्रीतम बदला तो नहीं, कोई मिला तुझे अगला तो नहीं, दिल तेरा कहीं फिसला तो नहीं, यहीं पीर टीस सी सहती हूँ। खामोशी से तेरी डरती हूँ।। तू रूमानी सा लगे नही, तेरी मीठी बातें कहाँ गयी? तू तारीफें मेरी करें नही, वो नजर की चाह कहाँ गयी? मन तेरा मन में पढ़ती हूँ। खामोशी से तेरी डरती हूँ।। तू मनमीत भँवरों सा है, तू संगीत सप्त स्वरों सा है, तेरा प्रीत प्राप्य अवसरों सा है, तेरे मुखर वाणी से सँवरती हूँ। खामोशी से तेरी डरती हूँ।। तेरे मधुर बोल से हिल जाऊं, बन स्निग्ध सुमन मैं खिल जाऊं, तुझमें पारा बन मिल जाऊं, ये पांव पकड़कर कहती हूँ। खामोशी से तेरे डरती हूँ।। ये मौन तेरा मुझे दूर करें, मुझे विह्वल करके चूर करें, आनन्द के पल काफूर करें, अभिव्यक्ति से खुश रहती हूँ। खामोशी से तेरे डरती हूँ ।। ©Pragya Amrit ख़ामोशो से तेरे डरती है। #Dosti