सनम के दोहे हृदय बसी छवि सांवरी.. सुपन सों भरे नैन..! याद करत बरसे सावन.. भूले मिले न चैन!! टालत दिन कटे नहीं.. जागत गुज़रे रैन..! मारग सो नैना धरे.. कबों मिलेंगे बैन..!! बावरी बंसी भयी.. छोड़ गए पिया सॉवरे..! सुध खोय खोजत फिरे.. कब मिले तन-छाँव रे!! आवत स्वास पूछत.. जावत बिसरे नहीं नाम..! जहाँ बसे पिया सावरे.. तहाँ हमारो धाम..!! किस विधि मिलूं स्याम सो..लागूं कैसे अंग..! लागी फिर छूटे नहीं.. मैं तो जानूँ प्रेम रँग..!! श्रावण बूंद लगी तन - सों.. उठी अगन नाय बुझी, पिया मिलन की! व्याकुल अखियाँ आतुर भई.. कबों बुझैगी पिपास मोरे मन-हिरन की!! ©technocrat_sanam Here's my #art 🎨work 😇in the #background 😀🙃😌 (जब वक्त था तब ये भी एक शौक़ था..😄 और #दोहे.. 😇वो भी मेरे ही है 😛😄 कुछ नहीं #कबीर बनने की नापाक कोशिश है 😄 🙃 🙏