कल क्या होगा? कोई नहीं जानता... *तुम लिखने को प्रोफेशन मत बनाना, हर कोई लिखता है...जो काम तुम कर रहे हो वो लाखों में कोई एक करता है* उन दिनों चंडीगढ़ में ब्लड डोनर और मोटीवेटर के तौर पर अचानक उपर उठ रहा था, ये शब्द थे साहिर साहब के जिनसे मुझे मिलने का सुअवसर मिला और कुल 15 मिनट दिए गए मुझेऔर वो 15 मिनट कब 45 मिनट हो गए पता ही नहीं चला। लिखना लिखना मुझे आता नहीं न आता था, ना आता है...हां मेरे मन में लोगों की इतनी पीड़ाएं हैं जो मैंने देखी, सही, साझा की...मरता क्या न करता किसे बताता, किसके पास समय है जो मेरीi बकबक सुनता... लिखने को प्रोफेशन तो नहीं वो माध्यम बनाया की इस पीड़ा की निकासी हो सके.... ज़िंदगी है तो बहुत कठिन...मगर इस कठिनाई को रो लो या हस के ताल लो यही है जीवन जीना की विधि... खैर मुद्दे की बात ये है कि इस अनिश्चित जीवन को छोड़ कर जाने से पहले कुछ तो ऐसा करना चाहिए लोगों के मन के किसी कोने में एक छोटी सी याद ही हो कर रह जाएं... इसी कोशिश में मैं सभी को बारी बारी *प्यार,_का दस्तावेज़* दे कर जानाचाहता हूं... जो भी मन में शब्द आयेंगे लिखता जाऊंगा...नाम अल्फाबेटिकल ऑर्डर से हैं एक दिन उपर का अल्फाबेट अगले दिन जै के क्रम से... जिसको अच्छा लगे मेरी इस याद को सहेज ले...