19 सालो से जो नाटक करती आई, उसे इस घर की कोई खुशी ना सुहाई। जिस घर में वो बहू बन कर आई, उसी घर के लिए नफरत है उस के दिल में समाई। ना कभी पति की पत्नी बन पाई, बदला लेने के लिए ही है वो आयी। पिता समान ससुर का वो बेशर्म आदर कभी ना कर पाई, मां से भी प्यारी सास को गलियों से लांछन है उस ने लगाई। जो कभी संवरना नहीं जानती थी, आज उसे नखरे आते हैं हजार। पति की परवाह नही, पर उस के घरवालों की नजर मे वो सही। खुद 2 बच्चो की मां बन गई, ना जाने उसकी अक्ल कहा ठन गई मुझे आधी बुड्ढी बताती हैं, और बुड्ढी खुद नजर आती हैं। ध्ब्बा है ओरत के नाम पर, दिक्खार है मुझे उस के हर काम पर। मुझे रंग का काला बताती हैं, खुद रूप कि खान बन जाती हैं। बेहया,बेमुराद ये तेरी गवांरो वाली सोच, देखना इसी के कारण पड़ेगी तेरी जिंदगी में मोच। रंग से हूं में भले ही काली, पर देखना पानी भरेगी इक दिन तू मेरे आगे साली। कांटो कि चुभन नहीं देती मुझे, जितना तू चूभती है मेरी नजरो में। मेरे मा बाप की आंख में तेरी वजह से आंसू आए, रब करे मुझे तेरी सुरत कभी नजर ना आए। _ज्योति गुर्जर #बेशर्म