पाव पसारे घर में ..... थी पंख फैलाने को तैयार ... आंखों से ओझल था उसके वो हैवानियत भरा संसार पापा की थी लाडली ..... मां करती थी दुलार.... भाई के आंख का तारा थी.... और बहन समझती अपना सम्मान... आंखो से ओझल था उसके वो हैवानियत भरा संसार जिस आंगन मे पली बढ़ी.... अब बाहर निकल .... थी कुछ बनने को तैयार... ना जाने उस मोड़ पर.... कैसे हुई उस रावण से मुलक़ात..... वह समझ कर राम उसे...... लगा बैठी मदद की आस..... क्या पता था करने आया है...... वह उसके पखो का नाश...... आंखो से ओझल था उसके वह हैवानियत भरा संसार जो कभी रोयी नहीं..... झील के भी समान ..... आज फुट पड़ी कुछ ऐसे..... जैसे समुंदर की धार...... आंखो से ओझल था उसके..... वो हैवानियत भरा संसार आंखो मे लेकर आयी थी ...... वो सपने हजार.... क्या पता था टूटेंगे ऐसे .... जैसे कांच की दीवार.... आंखो से ओझल था उसके.... वह हैवानियत भरा संसार जी कर भी वह जी ना पाई..... बन गई थी जिंदा लाश.... देखकर मां -बाप के आंसू .... तोड़ दिया दम उसी रात ..... आंखो से ओझल था उसके.... वह हैवानियत भरा संसार। ©kirti mishra #rape #life #kirti_mishra #womenlife #women_special #hindipoetry #zeendgi