खुले आसमां के तले बैठ कुछ सपनों के बारे बताना था तुम्हें शायद तुम्हें फुर्सत नहीं मुझे सुनने की मैं लाख चाहूं कि खाबों से दूर रहूं मगर मेरी तो आदत है सपने बुनने की एक रोज तो सुनो,एक बार तो समझो मुझे एक बार तो जख्मों पर गौर करो एक बार तो एहसास -ए-मरहम दो मुझे रूह की तलाश में कब से फिर रहा एक मुसाफिर मत अपना फकत ये बदन दो मुझे एक साए जैसा साथी जिसकी मुझे तमन्ना है कम से कम मेरे मौत तक ऐसा एक वहम दो मुझे ©Bebaak Shayar Bhupal hum sath sath. #jindagikasafar #Jindagi #BebaakshayarBhupal #Hum