मैं बचपन में खेल रहा था सड़क किनारे थक गया था सो गया वहीं पेड़ की छांव सहारे काफ़ी देर सोया उठा तो गदगद था काफ़ी घना वह ऊँचा पेड़ बरगद था नजर का अंदाज घूमने लगा टहनी टहनी हर डाल पर बसेरा था तपन सी गर्मी गर्मी आज हम जबां हैं मगर वह पेंड़ कहाँ है उस सड़क पर जहाँ चलता खेलता जग हंसा है