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प्रकृति पर कविता/Poem on nature in hindi जलमग्न



प्रकृति पर कविता/Poem on nature in hindi

जलमग्न हुई कहीं धरा,कहीं बूंद-बूंद को तरसे धरती।
किसने छेड़ा है इसको, क्यों गुस्से में है प्रकृति।।

किसने घोला विष हवा में,किसने वृक्षों को काटा ?
क्यों बढ़ा है ताप धरा का,क्यों ये धरती जल रही ?
जिम्मेवार है इसका कौन,क्यों ग्लेशियर पिघल रही ?
किसने इसका अपमान किया,
कौन मिटा रहा इसकी कलाकृति ?
किसने छेड़ा है इसको,क्यों गुस्से में..........?

धरती माँ का छलनी कर सीना,प्यास बुझाकर नीर बहाया।
जल स्तर और नैतिकता को भूतल के नीचे पहुँचाया।
विलुप्त हुये जो जीव धरा से,जिम्मेवार है उसका कौन ?
जुल्म सह-सहकर तेरा, अब नहीं रहेगी प्रकृति मौन।
आनेवाले कल की जलवायु परिवर्तन झाकी है।
टेलर है भूकंप, सुनामी, पिक्चर अभी बाकी है।
फिर नहीं कहना कि क्यों कुदरत हो गई बेदर्दी ?

किसने छेड़ा है इसको ,क्यों गुस्से में............3।

©Geetkar Niraj
  प्रकृति पर कविता।
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Geetkar Niraj

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