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कब तक यूँ ही भटकती रहूँगी इन लहरों के साथ,चंचल चित

कब तक यूँ ही भटकती रहूँगी
इन लहरों के साथ,चंचल चित्त और 
मन उद्विग्न है,चहुँ ओर अँधेरा छाया। 
जब-जब मन घबड़ाता मेरा,
बन जाऊँ बुद्धि-विवेक से हीन,
 पार लगेगी कैसे मेरी नैया 
कुछ समझ न आए।
अबला बन जीना नहीं मुझको
शक्ति भाव भर सबला बनूँ मैं,
ऐसी कृपा करो मेरी माँ
जीवन पथ प्रशस्त बना मैं
मंजिल अपनी पाऊँ।।

©shashi kala mahto
  #चंचलमन  
Pooja Udeshi narendra bhakuni Suresh Gulia Rakesh Srivastava Anshu writer