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नाउम्मीदी में उम्मीद की आस, हमने क्यूँ लगाई थी। पह

नाउम्मीदी में उम्मीद की आस, हमने क्यूँ लगाई थी।
पहले ही क्यूँ न संभले हम, जब इतनी ठोकर खाई थी।

क्यूँ खुद को हम समझ ना पाए, ऐसी गलती कर बैठे।
पहले भी हमने खुद से ही, अपनी पहचान गँवाई थी।

किस्मत ने था किया इशारा, खामियों को सुधारने का।
शुभचिंतकों ने सारे हमारे, बेहतरी की आस जताई थी।

काश कि हम समझ जाते, अपने हालातों की दास्ताँ।
बेवजह क्यूँ हमने अपनी, जान जोखिम में लगाई थी।

किस्मत के इस खेल में, सलामती अपनी कायम है।
वरना हम शायद ही बचते, अपनी ये जान गँवाई थी। ♥️ Challenge-684 #collabwithकोराकाग़ज़ 

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) 

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♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।
नाउम्मीदी में उम्मीद की आस, हमने क्यूँ लगाई थी।
पहले ही क्यूँ न संभले हम, जब इतनी ठोकर खाई थी।

क्यूँ खुद को हम समझ ना पाए, ऐसी गलती कर बैठे।
पहले भी हमने खुद से ही, अपनी पहचान गँवाई थी।

किस्मत ने था किया इशारा, खामियों को सुधारने का।
शुभचिंतकों ने सारे हमारे, बेहतरी की आस जताई थी।

काश कि हम समझ जाते, अपने हालातों की दास्ताँ।
बेवजह क्यूँ हमने अपनी, जान जोखिम में लगाई थी।

किस्मत के इस खेल में, सलामती अपनी कायम है।
वरना हम शायद ही बचते, अपनी ये जान गँवाई थी। ♥️ Challenge-684 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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