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फिलहाल मैं तुम्हारे अथाह प्रेम सागर के   किनारे खड़

फिलहाल मैं तुम्हारे अथाह प्रेम सागर के
  किनारे खड़े एक ताड़़ के तरू की 
तरह निरंतर तुम्हें ताड़नें की चेष्टा  में हूँ. 
कभी कभी तुम्हारी तेज लहरों के चलते 
तुम्हारा स्पर्श मेरा सिंचन कर के 
मानों मेरी जीने की चाहत हीं बढ़ा देता है . 
तुम्हारा कोप वचन! और मेरा उस पर भी हँस कर अभिनंदन !
सामुद्रिक लहरों के भयावह ध्वनि की तरह है 
जिस ध्वनि को सुन सब डर जाये  पर किनारे खड़ा ताड़वृक्ष 
उसको हीं संगीत मान कर उसी पर झूमता रहता है ।
लेकिन कबतक इस प्रेम सागर के किनारे
 खड़े होकर कल्पनाओं में खोया रहूँ ? 
मैं नहीं चाहता कि कंकड़ बन तुम्हारे प्रेम सागर में डूबूँ
 जो किसी मछुआरे के जालपाश में आ पुनः बाहर फेंक दिया जाऊँ . 
मैं ऐसा कोई वस्तु नहीं बनना चाहता
 जिसे लहरें फिर से किनारे पर  ला कर छोड़ दे .
अब मैं तुमसे मिलन की चाह में नदी बन चुका हूँ
  चला तो तुमसे मिलने को. 
 मार्ग के सभी चट्टानों को , वनों को किनारे करते हुये ।
 पर है कौन सी ऐसी सरिता जिसमें
 कम्बख्त दुनिया वालों नें बाँध नहीं बाँधे . 
मर्यादाओं के बाँध में जिम्मेवारियों के 
बड़े बड़े दरबाजे मुझ नदी को
 तुमसे मिलने नही देतें .पर उस प्रेम सागर
 तक जाये बिना  आराम कहाँ ? 
फिर भी  मैं आऊँगा जरूर .  
 किसी दिन ऊपर वाले की कृपा रूपी अतिवृष्टि होगी और 
बांध तोड़ कर  तुममे विलीन होने को . तुम्हारे प्रेम सागर में
 खुद को भिगोने को . तुममें खोनें को . 
संयोग सुख में रोने को । मैं आऊँगा. दुबारा दूर नहीं जाने को . 
ताड़ था तो कटने का डर था 
पत्थर था तो छँटने का डर था .
अब मैं नदी हूँ जो सागर से मिले बिना नहीं रुकने वाली 
और एक बार मिलनें के बाद उसे कोई कहां अलग कर पाया है। 
बस यही तो है प्रेम जिसमें नदी सागर में ऐसे समा जाती है
  जिसके बाद उसका खुद का अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है 
चारो तरफ दूर दूर तक सागर हीं सागर दिखाई देता है प्रेम सागर ।।
                 ✍️~~~  आचार्य परम्~~~~✍️

©परम् वै #प्रेमसागर poet jeet mishra Anupriya Sk Manjur khushvinder dahiya Anshu writer