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चुप्पी भी बुरी लगती है,थोड़ा शोर भी ज़रूरी है, बै

चुप्पी भी बुरी लगती है,थोड़ा शोर भी ज़रूरी है, 
बैठना भी ऊबा देता है इसलिए चलना भी ज़रूरी है।

हर शब्द के अनुलोम विलोम ऐसे ही नहीं बनाये,
 वरना एक दूसरे के मायने अधूरे ही रह जायें।

सच-झूठ,दिन-रात ये सारे एक दूसरे के विपरीत हैं, 
पर एक दूसरे के साथ मिलकर ही बुनते प्रीत हैं।

हर किसी के बिना यह सृष्टि लगती अधूरी है, 
सृष्टि में हर जीव की उपस्थिति भी ज़रूरी है।

पेड़,जानवर,मानव की जो श्रृंखला रब ने बनाया है, 
नियति को चलाने के लिए उसने खेल रचाई है।

लॉकडाउन में जब इंसान घरों में कैद बैठा है, 
जानवर और पेड़ भी यह देखकर हैरान बैठा है।

सोचकर देखें तो स्थिति कितनी डरावनी लगती है,
 इंसानों से ही ये दुनियाँ सुहावनी लगती है।

पेड़ों को लगता है कोई हमें पानी डालने आये, 
मेरे गिरे बिखरे पत्तों को कोई बिहार ले जाये।

जानवरों को लगता है कोई हमारा पेट भर जाये, 
भूखे प्यासे न मर जायें कोई इंसान तो बाहर आये।

हर किसी को अपनी अपनी सीमा में रहना ज़रूरी है, 
कभी कभी कुछ पाने के लिए खोना भी ज़रूरी है,

कोरोना को हराने के लिए घर में बंद रहना ही ज़रूरी है

VK SAMRAT शुभ रात्रि दोस्तों
चुप्पी भी बुरी लगती है,थोड़ा शोर भी ज़रूरी है, 
बैठना भी ऊबा देता है इसलिए चलना भी ज़रूरी है।

हर शब्द के अनुलोम विलोम ऐसे ही नहीं बनाये,
 वरना एक दूसरे के मायने अधूरे ही रह जायें।

सच-झूठ,दिन-रात ये सारे एक दूसरे के विपरीत हैं, 
पर एक दूसरे के साथ मिलकर ही बुनते प्रीत हैं।

हर किसी के बिना यह सृष्टि लगती अधूरी है, 
सृष्टि में हर जीव की उपस्थिति भी ज़रूरी है।

पेड़,जानवर,मानव की जो श्रृंखला रब ने बनाया है, 
नियति को चलाने के लिए उसने खेल रचाई है।

लॉकडाउन में जब इंसान घरों में कैद बैठा है, 
जानवर और पेड़ भी यह देखकर हैरान बैठा है।

सोचकर देखें तो स्थिति कितनी डरावनी लगती है,
 इंसानों से ही ये दुनियाँ सुहावनी लगती है।

पेड़ों को लगता है कोई हमें पानी डालने आये, 
मेरे गिरे बिखरे पत्तों को कोई बिहार ले जाये।

जानवरों को लगता है कोई हमारा पेट भर जाये, 
भूखे प्यासे न मर जायें कोई इंसान तो बाहर आये।

हर किसी को अपनी अपनी सीमा में रहना ज़रूरी है, 
कभी कभी कुछ पाने के लिए खोना भी ज़रूरी है,

कोरोना को हराने के लिए घर में बंद रहना ही ज़रूरी है

VK SAMRAT शुभ रात्रि दोस्तों