जाते-जाते न जाने क्यूं,लम्हा एक ठहर गया देकर दर्द जुदाई का,ना जाने किस शहर गया हंसते हैं वो इस तरह से,मानो कुछ हुआ ही नहीं आग लगी थी कहीं पर,कहीं पर पानी बह गया गहरे तजुरबे दे गये,इश्क के वो चार दिन आधा भरा था पैमाना,आधा खाली रह गया जाते हुए लम्हों,मुझ पर कुछ इल्जा़म तो कहो कागज़ पे कुछ लिखा था,कुछ बाकी रह गया पता चला है हाल उनके,हमसे जुदा नहीं आंसुओं की बारिश में,ख़ुमार सारा बह गया हर मोड़ पर मज़िल मिले,ये मुमकिन कहां जख़्म पुराने भर गए,दाग़ दामन पे रह गया… © trehan abhishek #लम्हा #जुदाई #इल्जाम #manawoawaratha #yqdidi #yqbaba #yqastheticthoughts #yqrestzone