"घोर आस्था " मंदिर बनाए थे एहसास के लिए और तुमने घोर आस्था लगा ली पत्थर को तोड़ा, तराशा और एक मूर्ति बना दी दानी सजनो ने धन दिया वो मन्दिर सजा दी पत्थर की तकदीर ही बदल दी मजदूर ने पत्थर बन बैठा माँ काली और तुमने घोर आस्था लगा ली बस मंदिर जाने से कहाँ ज्ञान मिलता है बहुत मुश्किल से यहां इंसान मिलता है मेहनत से पत्थर बदला मूर्त में जो भी है तन के अंदर है तू उलझ गया है सूरत में नित जेब तेरी हो रही है खाली और तुमने घोर आस्था लगा ली पेट बच्चों का पलता नही है तू प्रसाद कबूले बिन चलता नही है पाखंड में बचत खो रहा है और सोचता धंधा फलता नही है सिंचता है आपने हाथों से पौधों को तो बगिया हरी बरी है कब बादलों को ताकत है माली और तुमने घोर आस्था लगा ली ....राजेश बडगुज्जर घोर आस्था