सुनो, तन्हाइयों में तेरी याद बड़ा परेशान करती है...
बीती बातों की बारात बिन बुलाए बेवक्त ले आती है,
सांसें तेज, आंखें नम, होंठ सिले... दिल धड़कता है,
मासूम आदतन पुराने ज़ख्मों के नासूर ठंडे करता है,
फिर, खुरचने बैठ जाता, उम्मीद के झालर सजाता है
ना हिचक, ना हितार्थ थोड़ा... ना थोड़ी रहम खाता है,
कौन सी रिहाई... रिवायत खुद को देता, हैरान होता है,
दूर जाना है मुझे, अनगिनत आधे किस्से ना दोहराना है!