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एक मुक्तक अब तक जिया तू अपनों की चिंता में डूबकर,

एक मुक्तक

अब तक जिया तू अपनों की चिंता में डूबकर,
अब हो सके तो थोड़ी-सी ख़ुद की भी फिक्र कर।
अपनों ने लिया लाभ शराफ़त का अब तलक,
औरों की छोड़ आज तू ख़ुद के ही दिल पे' मर।।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #दिल_से