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अब इन दरख्तों हवाएँ नहीं, जो चली आ रही कभी झूम कर

अब इन दरख्तों हवाएँ नहीं,

जो चली आ रही कभी झूम कर  

अब वो फिज़ाएँ जिनमें घुलकर कभी,

चली आ रही थी खुशबू कोई,

 kavi Saurabh Shukla हवाएँ-कवि सौरभ शुक्ला
अब इन दरख्तों हवाएँ नहीं,

जो चली आ रही कभी झूम कर  

अब वो फिज़ाएँ जिनमें घुलकर कभी,

चली आ रही थी खुशबू कोई,

 kavi Saurabh Shukla हवाएँ-कवि सौरभ शुक्ला