घर था घर में बेटी थी मैं बड़ी, तारीफ़ खुब किया करते थे घर भर में मेरी । बड़ी बेटी ऐसी हैं मानो शान्त सरोवर के जैसी हैं, ना किसी वरदान की इच्छा ना सुशील वर की कामेच्छा, बड़ी बेटी ऐसी हैं शांत सरोवर के जैसी है। सबकी सुनती हैं सहती हैं कुछ न कहती हैं, बड़ी बेटी ऐसी हैं। सबने मुझको महान बना डाला, मेरे सपनो को होम कर डाला। सब कहते हैं मैनै कभी कुछ जताया नही, अपने दिल का हाल बताया नही। दिल तो कहता था कहदू उनसे, बाबा कोशिश तो की थी, दिल का हाल बताने की तुमसे। में ना बोली मगर बोले मेरे जख्म थे, तुम देख न सके, मेरे अन्तरमन कि व्यथा सुन न सके। राजकुमार कहँ तुमने जो सैतान थमाया था, वो परमेश्वर नहीं दैत्य हैं दानव हैं। यह हर बार मेरी अश्रुधारा ने तुमको बताया था, लेकिन बाबा तुम समझ ना सके। में कह न पाती थी तुमसे लज्जाती थी, लेकिन तुम तो सुन पाते थे। फिर भी ना दर्द भरी पुकार न सुनी मेरी! अब जा री हू मैं मृत्यु शय्या पर, एक छोटा सा निवेदन यह रख कर। बडी को शांत सरोवर बनाया सो, परिणाम देख चुके हो तुम। अब ऐसा ना करना। बाबा छोटी को बनाना तुम वीर, न सहनी पड़े उसे पीर। दिन वो देखने न पड़े कि, जख्म उसके भी बोल पड़े। बोले उसकी बुलंद आवाज, उसे ऐसा बनाना। बाबा अबकी बार, शान्त सरोवर नही माँ दुर्गा बनाना। #bdi_beti