गिरा भी,उठा भी ,उठ के चला भी जो था ज़रूरी सब कुछ किया भी मगर कारवाँ क्यों रहा बस सफ़र में क्यों मंज़िल है रुठी और रुठा खुदा भी। अब टूटा हूँ मैं और टूटा हौसला भी आशायें धुँधली ना होती सुबह भी ना भरोसा है ख़ुद पे ना भरोसा ख़ुदा पे एक डूबता सा सूरज मैं बना तो क्या बना भी। उनसे माँगा कभी उससे बढ़कर मिला भी बन सका ना सहारा है इसका गिला भी जो खुद है गिरा वो उन्हें क्या सम्भाले पिता ही ख़ुदा है और माँ ही दुआ भी। अपनी क़िस्मत पे आता है रोना हँसी भी ना क़िस्मत का खेला ना ख़ुदा है कहीं भी चंद सिक्कों में बिकती यहाँ पर है मंज़िल ना रस्तों की झंझट ना गिरना कहीं भी। समय समय का फेर है समय समय का जोग देखो लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग #yqdidi #timechanges #parents #failure #success #end #truth #shayari