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कल कल करती जिंदगी कलाबाज़ी खा रही। पल पल ये जिंदग

कल कल करती जिंदगी कलाबाज़ी खा रही। 
पल पल ये जिंदगी रेत सी हाथों से जा रही। 
न आया वो कल फिर किसी पल जो बीत गया। 
जी भर के जी ले अब भूतकाल से  वापस आ।
आने वाले की क्योंकर नाहक चिंता करता
कोई नहीं जानता भविष्य की कोख में क्या है  छिपा।
जो मुट्ठी में हैं दाने वही हैं खाने वही भुनाने
कह कर गये बात सही ये सभी सियाने। 
वर्तमान में बरत है जिंदगी का सार यही। 

कल कल करती जिंदगी कलाबाज़ी खा रही। 
पल पल ये जिंदगी रेत सी हाथों से जा रही। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 
 पल पल
कल कल करती जिंदगी कलाबाज़ी खा रही। 
पल पल ये जिंदगी रेत सी हाथों से जा रही। 
न आया वो कल फिर किसी पल जो बीत गया। 
जी भर के जी ले अब भूतकाल से  वापस आ।
आने वाले की क्योंकर नाहक चिंता करता
कोई नहीं जानता भविष्य की कोख में क्या है  छिपा।
जो मुट्ठी में हैं दाने वही हैं खाने वही भुनाने
कह कर गये बात सही ये सभी सियाने। 
वर्तमान में बरत है जिंदगी का सार यही। 

कल कल करती जिंदगी कलाबाज़ी खा रही। 
पल पल ये जिंदगी रेत सी हाथों से जा रही। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 
 पल पल
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