कैसी ये तेरी माया है.. कैसे ये तेरे बंधन है..! जब तक ये सांसे चलती है.. बंदा करता केवल धन-धन है..! जिसने कर ली दुनिया मुट्ठी में.. तेरे द्वार पे वो भी निर्धन है..! जिस पर इतराते फिरते हैं.. मिट्टी का केवल यह तन है..! सब तेरी कराई करते हैं.. अपने बस में किस का मन है..! क्या पाप-पुण्य..क्या सत्य कर्म.. तू सबको दिखाता दर्पण है..!! -------अमित #वैराग्य