तुम पास मेरे बैठो तो जरा , मै दिल की सुनाऊँ दास्ता हम जिस्म जाँ से एक है, क्यूँ रहे नज़र का भी फासला... ( शेष कविता अनुशीर्षक में पढ़े...) तुम पास मेरे बैठो तो जरा , मै दिल की सुनाऊँ दास्ता हम जिस्म जाँ से एक है, क्यूँ रहे नज़र का भी फासला । बहके हुए है क़दम मेरे, बहकी हुई सी है ये हवा तू खामोश दिल की जुबान है,