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हाथों का रंग भी सूख गया, राह तुम्हारी तकते तकते। अ

हाथों का रंग भी सूख गया,
राह तुम्हारी तकते तकते।
अब आँखे ही बस गीली हैं
राह तुम्हारी तकते तकते।।

दिया भरोसा आओगे वापस तुम ही परसों ।
लेकिन तब से अब तक बीत गए हैं बरसों ।।
शायद अब तो साथ छोड़ दें साँसे भी
राह तुम्हारी तकते तकते।।

हम नहीं भूले मगर गए तुम हमको भूल ।
तुमको पहचानने में हमने कर दी भूल।।
शायद आंखे ही नहीं दिल भी पत्थर बन जायेगा
राह तुम्हारी तकते तकते।।

हो जाती यदि बात तुम्हीं से 
दिख जाती यदि छवि कहीं से
शायद आँखों पर भी बोझ नहीं पड़ता 
राह तुम्हारी तकते तकते।।

नयन प्रतीक्षा में बैठें हैं।
शब्द प्रतीक्षा में बैठें हैं।
शायद आ जाओ तो ये हाथ नहीं बैठेंगे,
राह तुम्हारी तकते तकते।।

तुम आ जाते तो होती होली।
अब बीत रही अँसुअन में होली।।
स्पर्श किसी को करने नहीं देंगे
राह तुम्हारी तकते तकते।।

तुम चले जाओ अब यहाँ से ऊधो।
नहीं तो हम मिलकर कर देंगे सूधो।
बतला देना "मनु" हम प्राण छोड़ देंगे सब ही
राह तुम्हारी तकते तकते।। उद्धव गोपी सम्वाद 
आधुनिक रूप में

लक्ष्यार्थ श्री कृष्ण
हाथों का रंग भी सूख गया,
राह तुम्हारी तकते तकते।
अब आँखे ही बस गीली हैं
राह तुम्हारी तकते तकते।।

दिया भरोसा आओगे वापस तुम ही परसों ।
लेकिन तब से अब तक बीत गए हैं बरसों ।।
शायद अब तो साथ छोड़ दें साँसे भी
राह तुम्हारी तकते तकते।।

हम नहीं भूले मगर गए तुम हमको भूल ।
तुमको पहचानने में हमने कर दी भूल।।
शायद आंखे ही नहीं दिल भी पत्थर बन जायेगा
राह तुम्हारी तकते तकते।।

हो जाती यदि बात तुम्हीं से 
दिख जाती यदि छवि कहीं से
शायद आँखों पर भी बोझ नहीं पड़ता 
राह तुम्हारी तकते तकते।।

नयन प्रतीक्षा में बैठें हैं।
शब्द प्रतीक्षा में बैठें हैं।
शायद आ जाओ तो ये हाथ नहीं बैठेंगे,
राह तुम्हारी तकते तकते।।

तुम आ जाते तो होती होली।
अब बीत रही अँसुअन में होली।।
स्पर्श किसी को करने नहीं देंगे
राह तुम्हारी तकते तकते।।

तुम चले जाओ अब यहाँ से ऊधो।
नहीं तो हम मिलकर कर देंगे सूधो।
बतला देना "मनु" हम प्राण छोड़ देंगे सब ही
राह तुम्हारी तकते तकते।। उद्धव गोपी सम्वाद 
आधुनिक रूप में

लक्ष्यार्थ श्री कृष्ण