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जब संघर्षो की बदरी को चाक कर उम्मीद का सूर्य निकलत

जब संघर्षो की बदरी को चाक कर उम्मीद का सूर्य निकलता है
जब कल्पनाओं के सागर मे मन चिंतन करने निकलता है
जब हिर्दय की अभिलाषाओ का कोई ना सार निकलता है
जब शव्दों के मुसाफिर को मंजिल का दुआर ना मिलता है 
तब अपनी प्रिये लेखिनी से कुछ गड़ने का मन करता है कुछ लिखने का मन करता है।।

Roysahab #likhne ka man karta h...
जब संघर्षो की बदरी को चाक कर उम्मीद का सूर्य निकलता है
जब कल्पनाओं के सागर मे मन चिंतन करने निकलता है
जब हिर्दय की अभिलाषाओ का कोई ना सार निकलता है
जब शव्दों के मुसाफिर को मंजिल का दुआर ना मिलता है 
तब अपनी प्रिये लेखिनी से कुछ गड़ने का मन करता है कुछ लिखने का मन करता है।।

Roysahab #likhne ka man karta h...
ritikray9298

Raysahab

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