मुझमें कुछ कमी सी है, ये खालीपन अब अपना सा लगता है। अमृता की कविताओं में मैं अब इमरोज़ को भी नहीं ढूंढती। इस गम-ए-ग़ालिब में मैं दिल्ली हो जाती हूं, लोगो को भीड़ में मैं खुद से मिल जाती हूं। (शीर्षक पढ़े) मुझमें कुछ कमी सी है, ये खालीपन अब अपना सा लगता है, अमृता की कविताओं में मैं अब इमरोज़ को भी नहीं ढूंढती। इस गम ए ग़ालिब में मैं दिल्ली हो जाती हूं, लोगो को भीड़ में मैं खुद से मिल जाती हूं।