एक अँधेरा सा कमरा दर का काम वहा बोहोत था गहरा बेखबर थी बहार की ज़िन्दगी से में क्युकी रहती थी बचपन से एक अँधेरे से कमरे में में एक रोज़ कोई आया जिसने उस कमरे में एक दरवाजा था बनाया पंख आज़ादी के मुजको पहनाया संग अपने मुझे उड़ना भी सिखाया फिर क्या था मुझे ले गया इस अँधेरे से दूर बोहोत जहा थी रोशनी ही रोशनी भरपूर बाद उसके क्या था बस ज़िन्दगी खुशनुमा सी हो गयी कहानी यहाँ खत्म हो गयी 🥰😍😘😁😇🤗🥰 #ek_andhera_sa_kamara WRITER BY RAJAL THAKKAR 😍🥰😘😇😊☺😄😄😇😘😚🤗🥰😇🥰😁😍🥰😘🤗