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÷÷÷अंधेरा÷÷÷÷डर का कहने को स्वतत्र हूं मैं, पर का

÷÷÷अंधेरा÷÷÷÷डर का
कहने को स्वतत्र हूं मैं, पर का स्वछंद हूं मैं।
पढ़ी लिखी हूं, पढ़ें लिखे समाज हिस्सा हूं।

फिर भी ना घर,ना बाहर निश्चिन्त हूं मैं।
कब कौन कहां किसलिए, कुछ निश्चित नहीं।

शंकित मन हर बार, प्रश्र ये करता है।
 उन घूरती आंखों को ,नजरंदाज कब तक करोगी।

सह सह कर जीना, नियति बन ना जाऐ।
,घुट घुट के जीने से अच्छा होता,हम मर जाऐ।

घर का पालन करने वाली, घर में हो रही अपमानित है।
जग का श्रजन करने वाली,अब जग से में ही हारी है।

है जगह सुरक्षित कौन सी, जहां भय का अंधेरा ना हो।
ये दर्द अपार सुनकर भी कान्हा,क्या अब तुम नहीं आओगे।
    अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻

©Ashutosh Mishra
  #andhere 
कहने को स्वतंत्र हूं मैं,पर कहां स्वछंद हूं मैं।
पढ़ी लिखी हूं, पढ़ें लिखे समाज का हिस्सा हूं मैं।
फिर भी ना घर,ना बाहर, कहां निश्चिन्त हूं मैं।
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Ashutosh Mishra

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#andhere कहने को स्वतंत्र हूं मैं,पर कहां स्वछंद हूं मैं। पढ़ी लिखी हूं, पढ़ें लिखे समाज का हिस्सा हूं मैं। फिर भी ना घर,ना बाहर, कहां निश्चिन्त हूं मैं। NojotoHindi NojotoEnglish NojotoNews Nojotothought Nojotopoetry #कविता

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