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लिखने बैठो तो मन व्याकुल हो उठता है शब्दों के साग

लिखने बैठो तो 
मन व्याकुल हो उठता है
शब्दों के सागर में भावनाओं 
के अनेक रंग निखर के आता है
लिख कर पढ़ कर स्वयं के
ही कविताओं को
नैनों में अश्रु भर जाता है

सोचती हूंँ अगर कभी किताब हाथ
ना आती मेरे तो क्या
मैं इन शब्दों से परिचित हो पाती
या शब्दों के रूप में अपने भाव 
पन्नो पर उकेर पाती
शायद नहीं कर सकती थी कभी

घर संभालना, रिश्ते निभाना 
यहीं सिखाया गया बचपन से
फिर भी एक उम्मीद हुई
कुछ आंखों में नए सपने सजे
स्त्री हूंँ अक्षरों से साक्षात्कार
करने में समय लगा

©प्रीति प्रभा 
  #प्रीतिप्रभा #Poetry