आरज़ू हमारी भी बहुत थी जिंदगी में। कमबख्त इस दुनिया की कशमकश ने कब उमर ही छीन ली मालूम ही ना पड़ा। सोचा था जिने के लिए पूरा समुंदर पड़ा है जब जीने के लिए समंदर में गया तब मालूम पड़ा बस यहां दो चार बूंदे पड़ी है।।। आरज़ू#शायरी#