"प्रकृत से खिलवाड़ क्यो" प्रकृति की सुरमई कोख से निकलकर क्यो तुले हो इसकी छठा को करने विकृत, रहने दो इस अटल प्रकृति का मंजु-मुकुर, बिन इसके धरा का श्रृंगार सदा नामंजूर। मत करो विकृत इस प्रकृत का स्वछंद स्वरूप, जो सृजित करती है जीवन का प्रफुल्लित रूप, है धरा का सब खण्ड इस प्रकृत का ही अतुलित फूल, फिर क्यो है तुम्हारा इसके साथ ऐसा घिनौना वसूल। जब ये झुंझलाकर धरा पर बरपाती है अपनी कहर, सिहर उठती है धरा व खण्डहर हो जाता है शहर, प्रकृति के सँग हो रहे छेड़छाड़ का पुरस्कार है पाना, लेकर सिख आपदाओं से तुमको है सम्भल जाना। मत खोदो खुद ही खुद की क़ब्र,क्या खुद के वजूद का परवाह नही, नित आधुनिकीकरण की खोज में,अब करो घोर अत्याचार नही, समय- समय पर प्रकृत देती रहती है नया-नया जर्ब, फिर भी न जाने क्यो रहते हो इतना बे-ख़ौफ़ तुम सब। ~आशुतोष यादव #प्रकृत_से_खिलवाड़_कब_तक HOLOCAUST Shikha Sharma Harsh dubey isshu singh.. शिल्पा यादव