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कभी अपनों से कभी परायो से, ठोकरे देता भी बहु

कभी अपनों से कभी परायो से,
      ठोकरे देता भी बहुत है ये बक्क्त भी...            
बक्क्त की है कटपुतली हम,
   कही सम्भालना तो कही बिखरना है                                             
कही रुकना तो कही चलना है....
  
         shantanu bakkt he to hai
कभी अपनों से कभी परायो से,
      ठोकरे देता भी बहुत है ये बक्क्त भी...            
बक्क्त की है कटपुतली हम,
   कही सम्भालना तो कही बिखरना है                                             
कही रुकना तो कही चलना है....
  
         shantanu bakkt he to hai
shantanuvishwaka7647

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