बीता हुआ पल पुरानी कॉपी के पन्नें बहोत उदास हैं इन दिनों सुना है अब बच्चे काग़ज़ की नाव नहीं बनाते ख़ाली छत और गलियां भी परेशान सी हैं ज़रा पतंगे भी कटकर गिरती नहीं हैं आजकल ... मोहल्ले में कोई खिड़की गिल्ली से नहीं टूटती बगल वाली चाची भैया की शिकायत भी नही करती बगीचे के आम खुद ही टूट कर गिर जाते हैं आजकल माली काका अब डण्डा लेकर किसी को नहीं दौड़ाते अब गुड़िया की चोटी खींचकर भी कोई नहीं भागता दीदी की गुल्लक से पैसे चुराकर आइस क्रीम की दुकान पे नहीं भागता कोई मेज खींचकर आल्मारी की ऊपरी दराज़ में रखे लड्डू भी ख़त्म नहीं होते दादी अब कहानी नहीं सुनाती दादा के साथ बगीचे में सैर को भी नहीं जाते हम अब गुब्बारे वाले के पीछे भी नहीं भागते हम बुड्ढी के बाल वाला भी नहीं आता मोहहल्ले में अब गांव मेरा बहोत बदला बदला सा लगता है मुझे वो बीता दौर बहोत याद आता है मुझे.... कुछ यादें बचपन की🙂