कैसे पढ़ूंगी में उन पन्नों को, जिनपर मैने तुम्हे लिखा था! उस रोज लिखने को मुझको,कुछ और न मिला था!! मैं डूब चुकी थी तुममें,और शायद तुम्हें पता भी नहीं था! मेरे अंदर अंतर मन में,तुम्हारे सिवा कुछ बाकी नहीं था!! अब समझाना पड़ता है बार - बार, अपने आप को! साथ में जो दिल रूठ गया है,तेरे साथ को !! जो पूरी न हो पाई है मेरी है अधूरी "आकांक्षा" अब में टूट सी गई हूं, दिल से हार के! #aakankshatiwari