FIRST POEM IN RAJASTHANI LANGUAGE. गणगौर (Festival of isarji and gouriji) त्यौहार इसर (शिवजी ) और गौरी (पार्वती माता ) का है. होलिका दहन के दूसरे दिन माँ गौरी अपने मायके आती है और चैत्र नववर्ष के बाद आने वाली तृतीय तीज को इसरजी गौरीमाई को लेने अपने ससुराल आते है मतलब पुरे 18 दिन यह त्यौहार चलता है. इसर जी ससुराल रहते है इसलिए इन्हे जवाई समझा जाता है.जिसमे लोक पारम्परिक गीत से गणगौर का उत्साह झलकता है. सुहागन और क़वारी लड़कियां दोनों इस का व्रत करती है. और अच्छे और मनचाहा पति का आशीर्वाद माँ गौरी से मांगती है. होलिका दहन के दूसरे दिन जावारा बोया जाता है,अर्थात दो कुंडी में मिट्टी और गेहूं को बोया जाता है और 18 दिनों में जावारा आजाते है जिसमे गेहूं की सुखी लकड़ी को लगाकर उसे इसर और गौर माता का रूप दिया जाता है. इन लोकगीतों में अपने परिवार के नाम भी लिए जाते है. मेरा मानना है की हम जितना हमारे संस्कृति से जुड़ेंगे उतना भावी जीवन समृद्ध होगा. मेरे घर जो गीत गाये जाते है उसमें कुछ है
1. गौर गौर गोमती इसरा पूज्या पार्वती
2. मेहंदी लो जी मेहंदी लो
3. आज बिनोरो इसरदास जी रों
4. गौर ये गणगौर माता खोल दो काँवड.
😅रोज माँ बोलती है तो सबको घर में याद हो गये गीत 🚩🚩🚩🚩बस यही कहूंगा अपनी संस्कृति सिखाओ और धर्म बचाओ तो कल जाकर युवा पीढ़ी हमारी सभ्यता परंपरा को जानेगी 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏.
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special thanks to indira didi for correcting mistake. #Shayari