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चलते चलते इतना दूर आ गई की। जब मुड़ कर देखा तो जि

चलते चलते इतना दूर
आ गई की।
जब मुड़ कर देखा 
तो जिंदगी वो पूरी धधुंली पडी थी।
ठहर कर वहां होता भी क्या‌?
अंधेरी रात की चादर वो ओढ़े खड़ी थी।।

उस गुलाब के फूल पर नजर पड़ी तो
फूलो ने तो अपना दम तोड़ दिया।
मगर उन कांटों की रूख तो मुड़ी तक नही थी।।

रूक जाती तो उस गुलाब के समान मरी हुई घोषित होती
और उन कांटों का रूप ले एक कदम चलते ही।
वह नवी जिंदगी बाहें फैलाएं मुझे अपनी आड़ मैं लेने को खड़ी थी।।

उस चाय की थड़ी पर नजर पड़ी तो
उन कुल्लड़ की दशा बदल।
उस चाय का मजा तो दुनिया ले ही चुकी थी।।

गिरकर खुद को तोड़ लेती
तुलना मेरी भी उस कुल्लड़ से होती।
और चाय की तरह मेरी उस हार का मजा यह दुनिया भी ले ही चुकी थी।।

उस आसमान पर नजर पड़ी तो
मेरी मंजिल भी मुझे इशारा कर रही थी।
फिर आजाद पंछी को उड़ने से कोई रोक सका है क्या?

अरे हारे हुए इंसान में उम्मीदों की चिंगारी फिर भड़क चुकी थी
और अपनी तकदीर लिखने वह फिर से चल पड़ी थी।।
 
-अंबिका ‌ सिंह A motivational poem♥️
चलते चलते इतना दूर
आ गई की।
जब मुड़ कर देखा 
तो जिंदगी वो पूरी धधुंली पडी थी।
ठहर कर वहां होता भी क्या‌?
अंधेरी रात की चादर वो ओढ़े खड़ी थी।।

उस गुलाब के फूल पर नजर पड़ी तो
फूलो ने तो अपना दम तोड़ दिया।
मगर उन कांटों की रूख तो मुड़ी तक नही थी।।

रूक जाती तो उस गुलाब के समान मरी हुई घोषित होती
और उन कांटों का रूप ले एक कदम चलते ही।
वह नवी जिंदगी बाहें फैलाएं मुझे अपनी आड़ मैं लेने को खड़ी थी।।

उस चाय की थड़ी पर नजर पड़ी तो
उन कुल्लड़ की दशा बदल।
उस चाय का मजा तो दुनिया ले ही चुकी थी।।

गिरकर खुद को तोड़ लेती
तुलना मेरी भी उस कुल्लड़ से होती।
और चाय की तरह मेरी उस हार का मजा यह दुनिया भी ले ही चुकी थी।।

उस आसमान पर नजर पड़ी तो
मेरी मंजिल भी मुझे इशारा कर रही थी।
फिर आजाद पंछी को उड़ने से कोई रोक सका है क्या?

अरे हारे हुए इंसान में उम्मीदों की चिंगारी फिर भड़क चुकी थी
और अपनी तकदीर लिखने वह फिर से चल पड़ी थी।।
 
-अंबिका ‌ सिंह A motivational poem♥️
ambikasingh9631

Ambika singh

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