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हर कोई यह कहता था , तुम्हें क्या दुनियादारी समझ आए

हर कोई यह कहता था ,
तुम्हें क्या दुनियादारी समझ आएगी,,,
कितना काम करना पड़ता है ,
मरने की भी फुर्सत नहीं है हमें ।।

आज प्रकृति ने तांडव मचा दिया,
हाथ बांधकर सबको घर में बिठा दिया,,
मरने के डर से सब घरों में कैद है ,,,
सब आतंकित जब प्रकृति बनी रौद्र है ।।

फुर्सत के क्षण बेशुमार ,,
सब सूखे रंगहीन पर्व त्यौहार ,,
लाचारी की बैसाखी पर चलकर ,
देखो वैशाख आ गया ।।

बिना भांगड़े बिना डीजे के,
रुखा- सुखा वैशाख आ गया,,
ना मेलों की रौनक है,ना ढोल का थाप,
ना सुरताल सरगम है ,,हर तरफ गम संताप ।।

उमस उबासी कांतिहीन,
वैशाख आ गया,
उदासी की बैसाखी पर चढ़कर,
देखो वैशाख आ गया ।।

पर कितना भी उदास ,
उबसा हुआ वैशाख है ,,
हमारे प्रायश्चित का आज,
प्रकृति को शांति भरा अरदास है ।।

प्रकृति से नहीं ,
खिलवाड़ करेंगे हम,,,
उल्लास उत्साह लौट आएगी,,
यह  सबके दिलों का आस है ।। बैसाखी पर बैसाख
हर कोई यह कहता था ,
तुम्हें क्या दुनियादारी समझ आएगी,,,
कितना काम करना पड़ता है ,
मरने की भी फुर्सत नहीं है हमें ।।

आज प्रकृति ने तांडव मचा दिया,
हाथ बांधकर सबको घर में बिठा दिया,,
मरने के डर से सब घरों में कैद है ,,,
सब आतंकित जब प्रकृति बनी रौद्र है ।।

फुर्सत के क्षण बेशुमार ,,
सब सूखे रंगहीन पर्व त्यौहार ,,
लाचारी की बैसाखी पर चलकर ,
देखो वैशाख आ गया ।।

बिना भांगड़े बिना डीजे के,
रुखा- सुखा वैशाख आ गया,,
ना मेलों की रौनक है,ना ढोल का थाप,
ना सुरताल सरगम है ,,हर तरफ गम संताप ।।

उमस उबासी कांतिहीन,
वैशाख आ गया,
उदासी की बैसाखी पर चढ़कर,
देखो वैशाख आ गया ।।

पर कितना भी उदास ,
उबसा हुआ वैशाख है ,,
हमारे प्रायश्चित का आज,
प्रकृति को शांति भरा अरदास है ।।

प्रकृति से नहीं ,
खिलवाड़ करेंगे हम,,,
उल्लास उत्साह लौट आएगी,,
यह  सबके दिलों का आस है ।। बैसाखी पर बैसाख

बैसाखी पर बैसाख #कविता