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कंक्रीट के जंगलों में जलन बहुत है। पश्चिम की हवाओ


कंक्रीट के जंगलों में जलन बहुत है।
पश्चिम की हवाओं में घुटन बहुत है।
गगनचुंबी इमारतों में घमंड बहुत है।
आसमां को छूने की अकड़ बहुत है।
बोलती दीवारों में खामोशी बहुत है।
जागते नहीं इन्सान बेहोशी बहुत है।
आब ओं हवा में विष घुला बहुत है।
मन रहता मलीन तन धुला बहुत है।
खुशी मिली कम गम मिला बहुत है।
ख्वाहिशों से आदमी हिला बहुत है।
दौड़ती सड़कों में फिसलन बहुत है।
तडपड़ाते रिश्ते के मसलन बहुत है।
उड़ता हुआ आदमी गिरता बहुत है।
समस्याओं से शहर घिरता बहुत है।
JP lodhi 08/11/2022

©J P Lodhi.
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