तपता सूरज, लगती धूप दिखे मानव का अलग रूप। नित काटे, वृक्ष हजार कैसे हो प्रकृति का उद्धार।। पंछी सारे खो गए अपना रैन बसेरा छोड़ गए। जल का संकट आया भारी कैसे लगे अब धरती प्यारी।। हरियाली देखे बरस हो गया मानव कर्तव्य विमुख हो गया। बादल छाए नहीं लेकर काला रूप कैसे हुआ मानव स्वयं राक्षस स्वरूप।। आओ ले, प्रतिज्ञा सारे मिल - जुल धरा सवारे। तब बने सुखद जीवन का सार ना हो पर्यावरण पर प्रहार।। -poetess sonika #WorldEnvironmentDay #poetess #sonika #tanwar #svra #poemkiduniya #nojotonews #nojotohindi #nojotoenglish