ख्यालों के हुजूम से, तनहाइयों के गलियारों तक, अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक| खुदा भी मिला है और काफ़िर भी मुझे, मैं सिमट के रह गया हूँ, अपनी चार दीवारों तक| अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक… मेरी आँखें गोया उसकी गुलामी करती हैं, वो ही दिखता है मुझे, नज़र से नज़ारों तक| अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक… एहसान मोहब्बत का रहा मुझ पर उम्र भर, मेरे साथ रही वो, सवालों से जवाबों तक| अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक… जिंदगी छोटी है मगर, ये सफर आसां नहीं, एक उम्र का फासला है, कोख से मज़ारों तक| अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक… मैं हर्फ़ – हर्फ़ संजो लेता हूँ उसके लिए जो मिलता नहीं मुझे, दुआओं से किताबों तक| अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक… #ANKUR# ख्यालों के हुजूम से, तनहाइयों के गलियारों तक, अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक| खुदा भी मिला है और काफ़िर भी मुझे, मैं सिमट के रह गया हूँ, अपनी चार दीवारों तक| अपना सच ढूँढ रहा हूँ, मैं सोच के किनारों तक… मेरी आँखें गोया उसकी गुलामी करती हैं,