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उसकी महक ने फिर मुझे शराब बनाया है, मुझ मुरझाए फूल

उसकी महक ने फिर मुझे शराब बनाया है,
मुझ मुरझाए फूल को सुर्ख गुलाब बनाया है। 

मैं इश्क़ की ओस मैं नहाई मगर नहीं बुझी, 
ज्यूँ उसने मुझको सुलगता शबाब बनाया है। 

रातभर खुली रही मैं उसके सीने से लगकर, 
दिल कहे उसने मुझे रुचिकर किताब बनाया है। 

जवाँ फिर दिखने लगी मैं साथ उसके रहकर,
उम्र छुपाने वाला खुद को हिजाब बनाया है।

हूँ मैं 'सखी' वो बन गया है जैसे मेरा सखा, 
सारी दुनिया को हड्डी-ए-कबाब बनाया है।

©Lata Sharma सखी #mehak
उसकी महक ने फिर मुझे शराब बनाया है,
मुझ मुरझाए फूल को सुर्ख गुलाब बनाया है। 

मैं इश्क़ की ओस मैं नहाई मगर नहीं बुझी, 
ज्यूँ उसने मुझको सुलगता शबाब बनाया है। 

रातभर खुली रही मैं उसके सीने से लगकर, 
दिल कहे उसने मुझे रुचिकर किताब बनाया है। 

जवाँ फिर दिखने लगी मैं साथ उसके रहकर,
उम्र छुपाने वाला खुद को हिजाब बनाया है।

हूँ मैं 'सखी' वो बन गया है जैसे मेरा सखा, 
सारी दुनिया को हड्डी-ए-कबाब बनाया है।

©Lata Sharma सखी #mehak