मिसरा-ए-तरह:देखिये कोन होता है अब सरफराज़ ढूंडती फिर रही है किसे चश्मे नाज़ "देखिये कोन होता है अब सरफराज़" रब तआ़ला को उस पर है बेहद ही नाज़ जो अदा हो गयी करबला में नमाज़ बंदगी जिसमें रब की नहीं की गयी राऐगां ही गयी एेसी उम्र-ए-दराज़ बहरे ग़म है बचा लीजिए मुस्तफ़ा डूब जाने को है ज़िंदगी का जहाज़ जलवा गर जब लहद में हों मेरे नबी मैं झुकाऊं अदब से जबीन-ए-नियाज़ बारगाहे नबी है ये ऐ आ़सियो मग़्फिरत का मिलेगा यहां पर जवाज़ ज़िक्र तेरा करे तो तड़प जाए दिल दे खुदा क़ल्बे "नाज़िम" को सोज़ो गदाज़ नाज़िम अहमद शाह✍ ©ᴅʀ ɴᴀᴢɪᴍ ᴀʜᴍᴀᴅ S͜͡ʜᴀʜ जो अदा हो गयी करबला में नमाज़