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"असंतुलित संवाद" (शेष अनुशीर्षक में) कभी कभी ऐसा ल

"असंतुलित संवाद"
(शेष अनुशीर्षक में) कभी कभी ऐसा लगता कि एक कदम भी
आगे बढ़ाया तो इस क्षितिज के पार कदम रख दूंगी
और एक कदम भी पीछे लिया तो
कई युगों पीछे धकेल दी जाऊंगी ।

दोनों ही स्थितियां भयावह है ,
ना ही समय की सीमाएं लांघनी है और ना ही समय को सीमाएं लांघने देनी है;
बल्कि समय की सीमाएं तय करनी है अपनी सीमाओं के हिसाब से ।
"असंतुलित संवाद"
(शेष अनुशीर्षक में) कभी कभी ऐसा लगता कि एक कदम भी
आगे बढ़ाया तो इस क्षितिज के पार कदम रख दूंगी
और एक कदम भी पीछे लिया तो
कई युगों पीछे धकेल दी जाऊंगी ।

दोनों ही स्थितियां भयावह है ,
ना ही समय की सीमाएं लांघनी है और ना ही समय को सीमाएं लांघने देनी है;
बल्कि समय की सीमाएं तय करनी है अपनी सीमाओं के हिसाब से ।