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हे कवि महान, आप पुज्य तुल्य करुं मैं हमेशा आपका ग

हे कवि महान, आप पुज्य तुल्य 
करुं मैं हमेशा आपका गुनगान 

क्षमाप्रार्थी हुं हे गुरुदेव 
पर एक बात आपकी जची नहीं 
चंद छंद हैं आपकी रचना के
जो मुझसे पची नहीं 

आपने कहा था वो भी पाप के भागी होंगे 
जो विना पक्ष लिए किसी का  मौन रहे 
सशक्त और सबल होने के बाद भी गौन रहे  
पर गुरुदेव पक्षधर बन समाज आज हमारा बटा हुआ है 
समाज में विष फैला और भाई भाई से कटा हुआ है 

पक्षधर आज विषधर बन बैठे हैं
जिनके सिर पर मणि सुसज्जित होना था 
वो हाय आज काल भुजंग से ऐठै  हैं 

सत्य मानो खो गया है 
पता नहीं क्या सबको हो गया हैं 
पक्षवाद का ये उन्माद हाय जगत को ले डुबेगा 
मैं किसको अपनी कविताएँ सुनाऊंगा 
जब मृत्यु सबके मुख को चुमेगा 

इन विषधरों  का बोझ अब धरा 
शायद ना उठाएगी 
यह उन्माद खत्म ना हुआ 
सबको ये रसातल में ले जाएगी 
अनल ऐसी लगेगी कुछ भी 
बच ना पाएगी 
जब कुछ बचेगा ही नहीं तो गुरुदेव 
मेरी कलम कैसे अपनी प्यास बुझाएगी

©"विभर्षी" रंजेश सिंह
  Open Letter to Ramdhari Singh Dinkar jee

Open Letter to Ramdhari Singh Dinkar jee #Poetry

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