बाबरा सा मन यह मेरा इत उत डोलता रहता है चंचल पवन सा चंचल है बस उड़ता ही रहता है नासमझ है समझता ही नहीं है यह दुनियादारी, जिंदगी में ठहराव से ही समझ आती जिम्मेदारी। काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है। विषय : ठहराव पंक्ति सीमा : 4 समय सीमा:18.02.2021 9:00pm विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।