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ख्वाहिश नहीं मुझे, मशहूर होने की, आप मुझे पहचानते

ख्वाहिश नहीं मुझे,
मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,
और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे,

जिंदगी की फलसफा भी,
कितनी अजीब है,
श्यामे कटती नहीं,
और साल गुजरते चले जा रहे हैं,

एक अजीब सी,
दौड़ है ये ज़िंदगी,
जीत जाओ तो कई,
अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो,
अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं,

बैठ जाता हूं,
मिट्टी पर अक्सर,
क्योंकि मुझे अपनी,
औकात अच्छी लगती है||

Munshi Premchand

©Ritu Dhingra ख्वाहिश नहीं मुझे,
मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,
और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,
ख्वाहिश नहीं मुझे,
मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,
और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे,

जिंदगी की फलसफा भी,
कितनी अजीब है,
श्यामे कटती नहीं,
और साल गुजरते चले जा रहे हैं,

एक अजीब सी,
दौड़ है ये ज़िंदगी,
जीत जाओ तो कई,
अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो,
अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं,

बैठ जाता हूं,
मिट्टी पर अक्सर,
क्योंकि मुझे अपनी,
औकात अच्छी लगती है||

Munshi Premchand

©Ritu Dhingra ख्वाहिश नहीं मुझे,
मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,
और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,

ख्वाहिश नहीं मुझे, मशहूर होने की, आप मुझे पहचानते हो, बस इतना ही काफी है, अच्छे ने अच्छा, और बुरे ने बुरा जाना मुझे, क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी, #Poetry #khwahishe