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#Tales कहानी :- विद्या दान 📝 देश भक्ति का अर्थ

 #Tales 
कहानी :- विद्या दान 📝

देश भक्ति का अर्थ हथियार लेके बॉडर पर लड़ना ही है क्या? र्कान्ति का मतलब नारेबाज़ी और अनशन है क्या? 
ये तो जज्बे की बात है, जब इनसान का हृदय चितकार करे और समाज को अपने होने का सबूत देते हुए निस्वार्थ भाव से कुछ दान करे तब शायद कृान्ति आए और वही सच्ची देशभक्ति हो। 
एक दिन पापा मुझे, मेरे छोटे भाई और माँ को घुमाने के बहाने हमारे शहर की हरिजन बस्ती में ले गए। स्वाभाविक था, हम सब हैरान थे। फिर लगा शायद पापा को कुछ काम होगा। पर वे बोले चलो तुम लोग सामने मंदिर में जा के बैठो मैं अभी आया। फिर उन्होंने एक घंटी बजाई और आसपास की झोपड़ीयों से लोग- बूढ़े, जवान और महिलाएं मंदिर के आंगन में दरी बिछा कर बैठ गए। पापा ने सभी को राम राम कह कर मंदिर की ताक पर रखी कॉपि़यां सभी में बाँट दी। सामने की दीवर पर रोलर बोर्ड टाँगा और सभी से हमारा परिचय करवाया। तब पता लगा की पिछले एक माह से पापा यहाँ पौढ़ शिक्षा शिविर चला रहे हैं। 
कई दिनों से पापा ऑफिस से कुछ देर से आ रहे थे, पूछने पर भी कुछ खास नहीं बताते थे। 
उस दिन उन्होंने बताया कि रोज़ इस बस्ती के साथ वाली सड़क से वे ऑफिस जाते थे, उसी दौरान उनके मन में ये विचार आया। फिर उन्होंने अपने पैसों से स्टेशनरी का सामान खरीदा और एक शाम ऑफिस से सीधा यहाँ आ गये।
 #Tales 
कहानी :- विद्या दान 📝

देश भक्ति का अर्थ हथियार लेके बॉडर पर लड़ना ही है क्या? र्कान्ति का मतलब नारेबाज़ी और अनशन है क्या? 
ये तो जज्बे की बात है, जब इनसान का हृदय चितकार करे और समाज को अपने होने का सबूत देते हुए निस्वार्थ भाव से कुछ दान करे तब शायद कृान्ति आए और वही सच्ची देशभक्ति हो। 
एक दिन पापा मुझे, मेरे छोटे भाई और माँ को घुमाने के बहाने हमारे शहर की हरिजन बस्ती में ले गए। स्वाभाविक था, हम सब हैरान थे। फिर लगा शायद पापा को कुछ काम होगा। पर वे बोले चलो तुम लोग सामने मंदिर में जा के बैठो मैं अभी आया। फिर उन्होंने एक घंटी बजाई और आसपास की झोपड़ीयों से लोग- बूढ़े, जवान और महिलाएं मंदिर के आंगन में दरी बिछा कर बैठ गए। पापा ने सभी को राम राम कह कर मंदिर की ताक पर रखी कॉपि़यां सभी में बाँट दी। सामने की दीवर पर रोलर बोर्ड टाँगा और सभी से हमारा परिचय करवाया। तब पता लगा की पिछले एक माह से पापा यहाँ पौढ़ शिक्षा शिविर चला रहे हैं। 
कई दिनों से पापा ऑफिस से कुछ देर से आ रहे थे, पूछने पर भी कुछ खास नहीं बताते थे। 
उस दिन उन्होंने बताया कि रोज़ इस बस्ती के साथ वाली सड़क से वे ऑफिस जाते थे, उसी दौरान उनके मन में ये विचार आया। फिर उन्होंने अपने पैसों से स्टेशनरी का सामान खरीदा और एक शाम ऑफिस से सीधा यहाँ आ गये।