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“मोहब्बत” ग़ज़ल – 1

                “मोहब्बत”
               ग़ज़ल – 1

अपने रूह से मेरे रूह को छू प्यार मेरा अमर कर दो।
मैं हूंँ अधूरा ज़िन्दगी में आकर पूरा कर दो।

खोए हैं एक दूजे के प्यार में होश में आने दो।
टूट कर चाहो ऐसे प्यार को हमारे मुकम्मल कर दो।

तुम अपनी हथेलियों पर मेरे नाम की मेंहदी रच लो।
अपने माथे पर मेरे नाम का बिंदी और सिंदूर भर लो।

धूप में मैं तेरे वास्ते मैं चला अपने बालों की छांँव कर दो।
आँखों में काजल चेहरे पर प्यार भरा आँचल रख दो।

इस क़दर टूट कर चाहो तुम मुझे पागल कर दो।
इक नज़र प्यार से ऐसे देखो मुझे पागल कर दो।

 #kkdrpanchhisingh 
#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#kkकविसम्मेलन 
#विशेषप्रतियोगिता 
#kkकविसम्मेलन3
                “मोहब्बत”
               ग़ज़ल – 1

अपने रूह से मेरे रूह को छू प्यार मेरा अमर कर दो।
मैं हूंँ अधूरा ज़िन्दगी में आकर पूरा कर दो।

खोए हैं एक दूजे के प्यार में होश में आने दो।
टूट कर चाहो ऐसे प्यार को हमारे मुकम्मल कर दो।

तुम अपनी हथेलियों पर मेरे नाम की मेंहदी रच लो।
अपने माथे पर मेरे नाम का बिंदी और सिंदूर भर लो।

धूप में मैं तेरे वास्ते मैं चला अपने बालों की छांँव कर दो।
आँखों में काजल चेहरे पर प्यार भरा आँचल रख दो।

इस क़दर टूट कर चाहो तुम मुझे पागल कर दो।
इक नज़र प्यार से ऐसे देखो मुझे पागल कर दो।

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